2025 की बहुप्रतीक्षित रोमांटिक फिल्म “आंखों की गुस्ताखियां” ने सिनेमाघरों में दस्तक दी है। फिल्म में अभिनेता विक्रांत मैसी और डेब्यू एक्ट्रेस शानाया कपूर मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म का निर्देशन किया है संतोष सिंह ने और इसकी कहानी प्रसिद्ध लेखक रस्किन बॉन्ड की लघु कहानी “It’s All In The Eyes” पर आधारित है।
हालांकि फिल्म का विचार रोचक है, लेकिन स्क्रीन पर इसका क्रियान्वयन दर्शकों के दिल को छूने में नाकाम रहता है। एक सशक्त विषय होने के बावजूद, यह प्रेम कहानी गहराई और भावनाओं की कमी के कारण दर्शकों को जोड़ने में असफल रहती है।
फिल्म की कहानी एक दृष्टिहीन गायक जहान (विक्रांत मैसी) और एक नवोदित अभिनेत्री सबा (शानाया कपूर) की मुलाकात से शुरू होती है। ट्रेन यात्रा के दौरान, सबा अपनी नई भूमिका के लिए खुद को अंधा महसूस करने के लिए आंखों पर पट्टी बांधकर यात्रा कर रही होती है। उसे यह नहीं पता कि जहान असल में देख नहीं सकता। दोनों के बीच बातचीत होती है और एक भावनात्मक जुड़ाव बनता है।
इस अनोखी शुरुआत के बाद, दर्शक उम्मीद करते हैं कि कहानी दिल को छूने वाले मोड़ लेगी, लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, कहानी अपनी पकड़ खो देती है।
फिल्म का निर्देशन संतोष सिंह ने किया है, और लेखन में उनका साथ दिया है मांसी बगला और निरंजन अय्यंगर ने। हालांकि फिल्म एक बेहतरीन और अलग थीम पर आधारित है, लेकिन पटकथा कमजोर साबित होती है। फिल्म का पहला भाग धीमा है और दूसरा भाग कोई खास उत्साह नहीं लाता।
दर्शकों को वह इमोशनल पंच नहीं मिलता जिसकी वह तलाश कर रहे होते हैं। ऐसा लगता है जैसे फिल्म अपनी संभावनाओं को सही से पहचान ही नहीं पाती।
विक्रांत मैसी हमेशा से ही एक सशक्त अभिनेता रहे हैं, लेकिन इस फिल्म में उनका प्रदर्शन उनकी क्षमताओं के अनुसार नहीं है। उनका किरदार एक दृष्टिहीन कलाकार का था, जिसे बहुत गहराई से निभाया जा सकता था। लेकिन स्क्रिप्ट में उतनी गहराई नहीं होने के कारण उनका अभिनय भी प्रभावी नहीं बन पाया।
यह शानाया कपूर की डेब्यू फिल्म है और उन्होंने अपने किरदार को आत्मविश्वास से निभाया है। हालांकि, उन्हें जिस स्क्रिप्ट का सपोर्ट मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। उनका अभिनय अच्छा है लेकिन वह उस स्तर तक नहीं पहुँच पाता जहाँ दर्शक उनकी भूमिका से जुड़ सकें।
शानाया के दूसरे प्रेमी के रूप में ज़ैन खान दुर्रानी का किरदार फिल्म में कोई बड़ा योगदान नहीं देता। न ही वह कोई बड़ा मोड़ लाता है और न ही फिल्म की गति को बढ़ाता है।
फिल्म का संगीत विशाल मिश्रा ने तैयार किया है और यही इसका सबसे मजबूत पक्ष है। गाने मधुर हैं और कुछ दृश्य संगीत की वजह से ही थोड़े भावनात्मक लगते हैं। पियानो, सूफी टच और मेलोडी आधारित ट्रैक्स फिल्म के माहौल को सॉफ्ट बनाए रखते हैं।
हालांकि संगीत अच्छा है, लेकिन जब कहानी कमजोर हो तो संगीत भी फिल्म को पूरी तरह से नहीं बचा सकता।
फिल्म की शूटिंग कुछ बेहद खूबसूरत जगहों पर हुई है, जिनमें पहाड़, ट्रेन के सफर और शांत झीलें शामिल हैं। लेकिन केवल सुंदर दृश्य ही किसी फिल्म को यादगार नहीं बनाते। कहानी और किरदारों में जान होनी जरूरी होती है, जो यहां कहीं खो गया है।
कहानी में भावनात्मक गहराई की कमी
कोई यादगार दृश्य नहीं जो दिल को छू सके
पात्रों के बीच कोई जवाबदेही और टकराव नहीं
संवादों में भावनात्मक असर का अभाव
बहुत सारे अविश्वसनीय और कृत्रिम सीन
“आंखों की गुस्ताखियां” एक ऐसा फिल्मी प्रेम पत्र है जो अपने गंतव्य तक नहीं पहुंचता। यह फिल्म एक बेहतरीन विचार से शुरू होती है लेकिन आधे रास्ते में ही थक जाती है। रोमांस में वो चिंगारी नहीं है, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ सके।
अगर आप विक्रांत मैसी या शानाया कपूर के प्रशंसक हैं तो एक बार देख सकते हैं, लेकिन भावनात्मक रोमांस की तलाश में हैं तो शायद यह फिल्म आपकी उम्मीदों पर खरा न उतरे।
This post was published on जुलाई 11, 2025 16:51
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