भारत, जो कभी विश्व गुरु कहलाता था, आज बेहतर शिक्षा प्रणाली के कमी का रोना रो रहा है। अनुसंधान के क्षेत्र में तो हमारी दशा और भी दयनीय अवस्था में है। कतिपय कारणो से शिक्षा के मंदिर को स्थानीय राजनीति का अखाड़ा बना दिया गया है। मध्याह्न भोजन योजना का आलम ये है कि प्राथमिक कक्षाओं में ही बच्चो के मस्तिष्क में भ्रष्टाचार का बीजारोपण कर दिया जाता है। शिक्षक भर्ती की लचर व्यवस्था के बीच फर्जीवाड़ा, अब दबंगई का रूप धारण करने लगा है। गौरतलब बात ये है कि इसका सर्वाधिक खामियाजा कमजोर और पिछड़े तबके के छात्रो को ही भुगतना पड़ रहा है।
सूचकांक में बिहार नीचे
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के द्वारा जारी सूचकांक पर गौर करें तो बिहार, राजस्थान, झारखंड, प. बंगाल, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में शैक्षिक गुणवता और परीक्षा परिणाम राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है। इन राज्यों में समाज के निचले तबके तक शिक्षा की पहुंच बढ़ाने का निर्देश तो दिया जाता है। किंतु, इसका सम्यक पालन नहीं होता है। वहीं, न्यूपा के शिक्षा विकास सूचकांक में राजधानी दिल्ली, हिमाचल, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक को देश के पांच टॉप राज्यों में शुमार किया गया है।
न्यूपा ने दिए कई सुझाव
नेशनल यूनिवसिर्टी ऑफ एजुकेशन प्लानिंग एण्ड एडमिनिस्ट्रेशन (न्यूपा) ने ईडीआई के हवाले से खुलासा करते हुए कहा है कि गुणात्मक शिक्षा, परीक्षा प्रणाली और स्कूलों में दाखिले के मुकाबले रिटेंशन दर संतोषजनक नहीं है। प्राथमिक शिक्षा के सर्वभौमीकरण के लिए मंत्रालय ने राज्यों से ईडीआई का समुचित मूल्यांकण करने और ढांचागत सुविधाओं का विकास करने के अतिरिक्त शिक्षकों के चयन में वास्तबकि परदर्शिता के साथ उनकी शैक्षणिक सक्रियता सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया है।
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This post was published on जुलाई 30, 2018 12:18
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