KKN ब्यूरो। बिहार की राजधानी पटना में करीब 26 साल पहले एक हाई प्रोफाइल केस सामने आया था, जिसने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया था। यह केस था शिल्पी-गौतम मर्डर मिस्ट्री, जिसे सीबीआई ने आत्महत्या करार देकर बंद कर दिया था। लेकिन यह केस आज भी कई सवालों के साथ अधूरा पड़ा है। आइए जानते हैं, इस केस से जुड़ी पूरी कहानी।
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कौन थे शिल्पी और गौतम?
यह घटना साल 1999 की है। पटना की रहने वाली शिल्पी जैन, जो मिस पटना भी रह चुकी थीं, और गौतम सिंह, जो एक एनआरआई डॉक्टर का बेटा था। गौतम राजनीति में रुचि रखता था और तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के भाई साधु यादव का करीबी माना जाता था।
कैसे हुई घटना की शुरुआत?
शिल्पी 3 जुलाई 1999 को अपने इंस्टिट्यूट के लिए घर से निकली थीं, लेकिन फिर कभी वापस नहीं लौटीं। उसके परिवार ने उसकी तलाश शुरू की, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। अगले दिन पटना के गांधी मैदान थाना क्षेत्र में स्थित एक बंगले के गैराज में खड़ी मारुति कार से दो लाशें बरामद हुईं।
कैसे मिली थीं लाशें?
जब पुलिस ने जांच की तो पाया कि कार में 23 वर्षीय युवती और 28 वर्षीय युवक की अर्धनग्न लाशें थीं। युवती की पहचान शिल्पी जैन के रूप में हुई, जबकि युवक गौतम सिंह निकला। पुलिस के अनुसार, गौतम की बॉडी पर कपड़े नहीं थे और शिल्पी केवल एक टी-शर्ट पहने थी।
हत्या या आत्महत्या?
पहले पुलिस ने इसे सामान्य आत्महत्या का केस बताया, लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, मामला हाई प्रोफाइल बनता गया। इस केस के तार सत्ताधारी दल के नेताओं से जुड़ने लगे थे।
क्या हुआ था वाल्मी गेस्ट हाउस में?
घटना की जांच में पता चला कि वाल्मी गेस्ट हाउस, जो पटना के बाहरी इलाके फुलवारी शरीफ में स्थित है, वहां पर शिल्पी को जबरन ले जाया गया था।
- वहां शिल्पी के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया।
- गौतम जब शिल्पी को बचाने के लिए पहुंचा तो उसे भी पीटा गया।
- इसके बाद दोनों की गला दबाकर हत्या कर दी गई।
पुलिस की संदिग्ध भूमिका
पुलिस की भूमिका इस मामले में संदिग्ध रही:
- पुलिस ने बिना पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार किए दोनों शवों का अंतिम संस्कार कर दिया।
- कार को ड्राइव करके थाने ले जाया गया, जिससे उसमें मौजूद फिंगरप्रिंट मिट गए।
- सीबीआई जांच के दौरान कई नेताओं के नाम सामने आए, लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में खुलासा
जब फॉरेंसिक रिपोर्ट आई, तो चौंकाने वाले खुलासे हुए:
- शिल्पी के कपड़ों पर वीर्य के कई दाग थे, जो एक से अधिक लोगों के थे।
- दोनों के शरीर पर चोटों और खरोंचों के निशान थे।
- रिपोर्ट ने पुलिस की आत्महत्या वाली थ्योरी को गलत साबित कर दिया।
केस में क्यों आया था साधु यादव का नाम?
इस केस में बिहार की राजनीति का बड़ा नाम साधु यादव बार-बार उछला।
- सीबीआई ने डीएनए टेस्ट के लिए उनका ब्लड सैंपल मांगा, लेकिन उन्होंने देने से इनकार कर दिया।
- कई रिपोर्ट्स में आरोप लगाया गया कि इस घटना के पीछे बड़े नेताओं का हाथ था।
- विपक्ष ने इस मुद्दे को सदन में उठाया, लेकिन सरकार ने इसे दबा दिया।
चार साल तक चली सीबीआई जांच और फिर…
प्रदेश सरकार ने दो महीने बाद इस केस को सीबीआई को सौंप दिया। लेकिन चार साल बाद, 1 अगस्त 2003 को, सीबीआई ने केस को आत्महत्या बताकर बंद कर दिया।
- शिल्पी के कपड़ों पर मिले वीर्य के दागों को “पसीना” बताया गया।
- जहर खाने से मौत की थ्योरी बनाई गई।
- किसी बड़े नाम को दोषी नहीं ठहराया गया।
शिल्पी के भाई का अपहरण!
2006 में शिल्पी के भाई प्रशांत का अपहरण हो गया। पुलिस ने अपहरण की पुष्टि की, लेकिन कुछ दिन बाद प्रशांत लौट आया और उसने इस मामले पर कभी बात नहीं की।
आज भी अनसुलझे हैं ये सवाल…
- क्या वाकई यह मर्डर नहीं, आत्महत्या थी?
- शिल्पी और गौतम की हत्या की वास्तविक वजह क्या थी?
- साधु यादव ने अपना डीएनए सैंपल क्यों नहीं दिया?
- पुलिस ने इतनी जल्दी सबूत क्यों मिटा दिए?
- 2006 में शिल्पी के भाई का अपहरण क्यों हुआ?
- बंद गैराज में लाशें होने की सूचना पुलिस को किसने दी?
अलर्ट: सतर्क रहें, सुरक्षित रहें
यह केस सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि सत्ता और अपराध के गठजोड़ का उदाहरण है। अगर हम सतर्क रहें, तो खुद को और अपने अपनों को ऐसे अपराधों से बचा सकते हैं। (नोट: यह लेख केवल सूचना और जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है।)
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