KKN न्यूज ब्यूरो। चार रोज से चल रहा लोकआस्था का महापर्व संपन्न हो गया। पर्व के अंतिम रोज सोमवार की सुबह गांव में ध्वनि प्रदूषण का स्तर 60 डेसिवल और एअर इंडेक्स 210 बता रहा था। जबकि, पर्व से ठीक पहले और बाद में ध्वनि का स्तर करीब 40 डेसिवल और एअर इंडेक्स 170 के आसपास था। यह स्थिति करीब- करीब सभी गांवों का एक जैसा ही है।
सवाल उठता है कि जो पर्व बेहतर स्वास्थ्य के लिए बनाया गया था। उसको हमने इतना खतरनाक क्यों बना दिया? पूजा का मतलब शांति से होता है। ऐसे में पूजा के मौके पर लाउडस्पीकर और डीजे बजाने का बढ़ता प्रचलन कितना उचित है? मानव के शरीर पर होने वाले इसके खतरनाक दुष्परिणाम से लोग अनजान क्यों है? यदि लोगो को इसकी जानकारी नहीं है, तो जागरूक करने वाली संस्था चुप क्यों है? सरकार और प्रशासन में बैठे लोगों की जिम्मेदारी कौन तय करेगा? ऐसे और भी कई सवाल है, जो पर्व के दिनों में अकसर मुंह खोले खुलेआम जीवन पर संकट बन कर खड़ा हो जाता है। बड़ा सवाल ये कि गांव की शांति कहां चली गई?
इनदिनों गांव में देर रात तक लाउडस्पीकर और डीजे बजाने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। मौका या बेमौका तेज आवाज से गांव में बच्चों की पढ़ाई और रोजमर्रा का कामकाज बुरी तरीके से प्रभावित हो रहा है। नींद नहीं आने या कम सोने की वजह से लोग चिर- चिरे हो रहें हैं। लोग तनाव की वजह से बीपी की चपेट में आने लगें हैं। अनजाने में कुछ लोगों की गलती का खामियाजा पूरे समाज को भुगतना पड़ रहा है। सार्वजनिक समारोह के दौरान यह समस्या बेहद ही खतरनाक स्तर को पार कर जाती है। क्या हम बिना लाउडस्पीकर के पर्व या समारोह नहीं कर सकते हैं? यह बड़ा सवाल है और इस पर गंभीरता से विचार करने का वक्त आ गया है।
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