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सुरो का सरताज पर ‘ सुरदास ‘

संतोष कुमार गुप्ता

-पत्नी ने कर ली आत्महत्या,नयन की रोशनी चली गयी,किंतु सुरो के है बादशाह

मुजफ्फरपुर।  जिंदगी के साथ क्या होता है क्रूर मजाक कोई प्रबोध झा से पूछे। शादी के आठ साल भी नही बीते की पत्नी स्वर्ग सिधार गयी। उस वक्त पत्नी गर्भवती थी । नतिजतन प्रबोध को औलाद का सुख भी नही मिल सका। रामलीला के मंच पर राम का कीरदार बन कर सटीक धनुष का निशाना साधने वाला प्रबोध अब सुरदास बन चुका है। उसको आंख से कुछ दिखायी नही देता। वावजूद हारमोनियम की पटरी पर उनकी अंगुली सुर के सरगम के साथ सरपट दौड़ती है। उनके सुरीले तान के लोग कायल है। चौथा पास होने के बाद भी रामचरितमानस सहित अन्य ग्रंथो को उन्होने कठंस्थ कर रखा है। मुजफ्फरपुर जिले के कटरा प्रखंड अंतर्गत नगवारा पंचायत के विशुनपुर गांव के प्रबोध झा 62 वसंत पार कर चुके है। किंतु उनकी दर्द भरी कहानी रोंगटे खड़ी कर देती है। वह पचास सालो से रामलीला मंडली मे विभिन्न कीरदारो के रूप मे काम कर रहे है। उनकी शादी 27 फरवरी 1983 को मूर्ति देवी के साथ हुई थी। उस वक्त प्रबोध झा रामलीला मे राम का बेहतर किरदार निभाते थे।इनके कीरदार व अभिनय को देखने लोग दूर दूर से आते थे। रामलीला पार्टी मे विभिन्न इलाको मे जाने के कारण वह अक्सर घर से बाहर रहते थे। वर्ष 1991 मे परिवारिक प्रताड़ना से तंग आकर इनकी पत्नी मूर्ति देवी ने अपनी इहलीला समाप्त कर ली। औलाद के लिए तरस रहे प्रबोध को गर्भवती पत्नी की मौत ने झकझोर कर रख दिया। वह काफी उदास रहने लगे।  वावजूद उन्होने रामलीला मे किरदार निभाना नही छोड़ा। उनकी आंख की रोशनी काफी कम हो चली। उनके आंख का आपरेशन कोलकत्ता के बाबूहट्टी अस्पताल मे कराना पड़ा। किंतु डॉक्टरो की लापरवाही से इनके आंखो की रोशनी चली गयी। अब इन्हे कुछ नही दिखायी देता है। उम्र के इस पड़ाव मे भी वह पत्नी,औलाद व नयन के सुख से वंचित है। वावजूद रामलीला के साथियो ने दुख की घड़ी मे इनका साथ नही छोड़ा है। अब इनकी सेवा व्यास के रूप मे ली जा रही है। अब वह हारमोनियम के धुनो पर सबको नचाते है। उनके शास्त्रिय संगीत,लोकस्वर व गजल के सभी दीवाने है। उन्होने मुजफ्फरपुर के एडवोकेट किंज्लक वर्मा से शास्त्रिय संगीत का कोर्स किया है। वह भी चौथा उतीर्ण होकर। वह कैलाश गिरी,बसुनायक,बद्री कवि व राधेश्याम के कविता को भी कठंस्थ कर चुके है। भाईयो ने इनका साथ छोड़कर मध्य प्रदेश मे बस गये है। हालांकि चचेरे भाई इनका ख्याल जरूर रखते है। जबकि रामलीला मंडली मे तो इनको किसी की कमी महसूस नही होती। उम्र के अंतिम पड़ाव मे चल रहे इनके हमउम्र विनोद झा श्रवण कुमार की तरह कांधे के सहारे इन्हे नित्यक्रिया को ले जाते है। सभी कामो मे साये की तरह इनके साथ चिपके रहते है। अन्य कालाकारो को इनका मार्गदर्शन मिलता रहता है। रामलीला मंडली के प्रोपराइटर शैलेंद्र मिश्र बताते है कि प्रबोध झा कालाकारो के लिए आदर्श है। माला(भोजन) का इंतजाम नही भी होने पर भी लोगो की सेवा देते है।

This post was published on अप्रैल 14, 2017 15:29

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संतोष कुमार गुप्‍ता

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