IIT हैदराबाद ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अपने कैंपस में AI-पावर्ड ड्राइवरलेस बस सेवा शुरू की है। यह भारत में इस तरह की पहली फ्रंटलाइन टेस्टिंग है, जहां बिना ड्राइवर के बस पूरी तरह AI और सेंसर टेक्नोलॉजी से चल रही है। कुछ ही दिनों में इस सेवा से 10,000 से अधिक यात्री सफर कर चुके हैं, जिनमें से 90% ने अपने अनुभव को बेहद सकारात्मक बताया।
ये ड्राइवरलेस बसें बिना किसी ड्राइवर के चलती हैं और AI-बेस्ड सॉफ्टवेयर व सेंसर से नेविगेट करती हैं। फिलहाल दो वेरिएंट उपलब्ध हैं—एक में 14 लोगों की क्षमता है और दूसरी में 6 सीटें हैं। शुरुआती रन में ही यह साबित हो गया है कि यह सिर्फ एक ट्रायल नहीं बल्कि भारतीय परिस्थितियों में काम करने वाला प्रैक्टिकल सॉल्यूशन है।
इन बसों में AI-आधारित सॉफ्टवेयर, LiDAR (Light Detection and Ranging) नेविगेशन और Autonomous Emergency Braking जैसी एडवांस टेक्नोलॉजी शामिल है। यह रास्ते में आने वाली बाधाओं को तुरंत पहचानकर ब्रेक लगा सकती है। बस आसपास के ट्रैफिक और मूवमेंट के हिसाब से अपनी स्पीड एडजस्ट करती है और सुरक्षित दूरी बनाए रखती है।
कम समय में ही 10,000 से ज्यादा लोग इस ड्राइवरलेस सफर का हिस्सा बन चुके हैं। लगभग 90% यात्रियों ने इसे सुरक्षित, स्मूद और फ्यूचरिस्टिक अनुभव बताया है। यह फीडबैक इस बात का संकेत है कि भारतीय यात्री ऑटोनॉमस ट्रांसपोर्ट पर भरोसा करने लगे हैं।
यह पूरी तकनीक IIT हैदराबाद की TiHAN (Technology Innovation Hub on Autonomous Navigation) टीम द्वारा विकसित की गई है। हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों का विकास और परीक्षण IIT कैंपस में ही किया गया है।
करीब ₹132 करोड़ की लागत वाला यह प्रोजेक्ट भारत का पहला ऑटोनॉमस नेविगेशन टेस्टबेड माना जा रहा है, जो देश को स्मार्ट ट्रांसपोर्ट सॉल्यूशंस की दिशा में आगे ले जा रहा है।
अभी ये बसें केवल कैंपस या कंट्रोल्ड एरिया में चलाई जा रही हैं। लेकिन सरकार इस तकनीक को अन्य क्षेत्रों में लाने की दिशा में भी कदम उठा रही है।
भविष्य में इन बसों का इस्तेमाल एयरपोर्ट, इंडस्ट्रियल जोन, बड़े कॉलेज कैंपस और कम ट्रैफिक वाले सरकारी इलाकों में किया जा सकता है।
IIT हैदराबाद की यह पहल भारत के इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम को नई दिशा देती है। यह दिखाता है कि देश स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार एडवांस ड्राइवरलेस सिस्टम डिजाइन और ऑपरेट करने में सक्षम है।
अगर रिसर्च और रेगुलेटरी सपोर्ट जारी रहा, तो आने वाले वर्षों में यह तकनीक पब्लिक ट्रांसपोर्ट का अहम हिस्सा बन सकती है, जिससे यात्रा सुरक्षित और मानव-त्रुटि रहित होगी।
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